हिमालय की गोद में, उत्तराखंड राज्य में अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित बद्रीनाथ धाम हिंदू धर्म के चार सबसे पवित्र धामों में से एक है। भगवान विष्णु को समर्पित इस धाम को ‘विशालपुरी’ और ‘विष्णुधाम’ के नाम से भी जानते हैं। यह धार्मिक स्थल नर और नारायण नामक दो पर्वतों के बीच स्थित है, जहाँ मान्यता है कि भगवान विष्णु ने तपस्या की थी। बद्रीनाथ की यात्रा को मोक्ष का द्वार माना जाता है, जिसके बारे में कहावत है: “जो जाए बद्री, वो न आए ओदरी” (जो बद्रीनाथ के दर्शन करता है, उसे दोबारा गर्भ में नहीं आना पड़ता)।

बद्रीनाथ धाम
बद्रीनाथ मंदिर की स्थापना को लेकर कई पौराणिक कथाएँ और मान्यताएँ हैं:
- पौराणिक इतिहास: मान्यता है कि इस धाम की स्थापना सतयुग में हुई थी। यहाँ पहले भगवान शिव और माता पार्वती का निवास था, जिसे भगवान विष्णु ने एक युक्ति से अपने विश्राम और ध्यान के लिए प्राप्त किया। जब माता लक्ष्मी ने विष्णु को बेर (बद्री) के वन में तपस्या करते हुए देखा, तब उन्होंने भगवान का नाम बद्रीनाथ रखा।
- शंकराचार्य का योगदान: वर्तमान मंदिर की स्थापना का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है, जिन्होंने 8वीं शताब्दी में अलकनंदा नदी से भगवान विष्णु की चतुर्भुज काली पत्थर की छोटी मूर्ति को निकालकर दोबारा स्थापित किया।
- मूर्ति की विशेषता: मंदिर के गर्भगृह में भगवान विष्णु पद्मासन की मुद्रा में विराजमान हैं। मूर्ति के मस्तक पर हीरा लगा है और इसे सोने से जड़े मुकुट से सजाया गया है।

अगर हिमालय में कोई जगह है जहां आस्था और अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य एक साथ मिलते हैं, तो वह है बद्रीनाथ। चारधाम यात्रा के प्रमुख धामों में शामिल यह पवित्र नगरी सिर्फ मंदिर दर्शन का स्थान नहीं है, बल्कि आत्मा को छू लेने वाली यात्रा है। यहां की शांत अलकनंदा नदी, बर्फ से ढकी चोटियां और प्राचीन कथाएं हर यात्री को गहराई से प्रभावित करती हैं। चाहे आप श्रद्धालु हों, साहसी यात्री हों या प्रकृति प्रेमी, बद्रीनाथ आपको अपनी गोद में समेट लेता है।
प्रमुख आकर्षण: शांति, आस्था और प्रकृति की सुंदरता
बद्रीनाथ धाम में मुख्य मंदिर के अलावा कई अन्य दर्शनीय स्थल हैं:
- तप्त कुंड (Tapt Kund): मंदिर के निकट ही स्थित यह प्राकृतिक गर्म जल का झरना है। यहाँ का जल हमेशा गर्म रहता है, जबकि आसपास का तापमान लगभग शून्य डिग्री सेल्सियस के आसपास रहता है। भक्त मंदिर में दर्शन से पहले इस पवित्र कुंड में स्नान करते हैं।
- ब्रह्मकपाल (Brahma Kapal): अलकनंदा नदी के तट पर स्थित यह वह स्थान है जहाँ तीर्थयात्री अपने पितरों का पिंडदान करते हैं। महाभारत की मान्यताओं के अनुसार, पांडवों ने भी यहीं अपने पितरों का पिंडदान किया था।
- माणा गाँव (Mana Village): बद्रीनाथ से लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित, यह भारत-तिब्बत सीमा से पहले का प्रथम भारतीय गाँव है। यहाँ भीम पुल, सरस्वती नदी का उद्गम स्थल और व्यास गुफा जैसे पौराणिक स्थान हैं।
- नीलकंठ पर्वत (Neelkantha Peak): यह भव्य पर्वत चोटी मंदिर के ठीक पीछे स्थित है, जो अपनी बर्फ से ढकी चोटियों के साथ मंदिर की शोभा को बढ़ाता है।
चारधाम यात्रा रजिस्ट्रेशन और परमिट
2025 में हर यात्री के लिए ऑनलाइन या ऑफलाइन रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है।
- रजिस्ट्रेशन वेबसाइट: registrationandtouristcare.uk.gov.in
- प्रक्रिया: यात्रा विवरण भरें, पहचान पत्र अपलोड करें और QR कोड वाला ई-पास प्राप्त करें।
- ऑफलाइन सुविधा: हरिद्वार, ऋषिकेश, जोशीमठ आदि में रजिस्ट्रेशन काउंटर उपलब्ध हैं।
ध्यान दें: रजिस्ट्रेशन के बिना मंदिर परिसर और प्रमुख मार्गों पर प्रवेश की अनुमति नहीं है। हमेशा डिजिटल/प्रिंट कॉपी साथ रखें।
बद्रीनाथ में ठहरने के लिए बेहतरीन होटल
- Sarovar Portico: मंदिर से 600 मीटर दूर, आधुनिक सुविधाएं और वेज बुफे।
- Hotel Snow Crest: बुजुर्ग यात्रियों के लिए आदर्श, मंदिर से 1 किमी दूरी।
- Hotel Narayan Palace: सूट और क्लासिक सुविधाओं के साथ।
- GMVN Tourist Rest House Devlok: सरकारी गेस्ट हाउस, बजट यात्रियों के लिए उपयुक्त।
- Vijaylords Palace & Hotel Pinnacle Peaks: साफ-सुथरे और मंदिर तक आसान पहुंच वाले होटल।
शांत अनुभव चाहने वाले यात्री माणा गांव (Mana Village) के छोटे होमस्टे में भी रुक सकते हैं।
बद्रीनाथ की यात्रा कैसे करें: सुरक्षित और सुगम मार्ग
बद्रीनाथ की यात्रा के लिए सबसे अच्छा समय मंदिर के कपाट खुलने के समय, मई से जून और फिर सितंबर से अक्टूबर का होता है, जब मौसम सुहावना रहता है। भारी बारिश और भूस्खलन के खतरे के कारण मानसून (जुलाई-अगस्त) से बचना चाहिए।
- हवाई मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा जॉली ग्रांट हवाई अड्डा, देहरादून (DED) है, जो बद्रीनाथ से लगभग 314 किलोमीटर दूर है।
- रेल मार्ग: निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है, जो बद्रीनाथ से लगभग 295 किलोमीटर की दूरी पर NH58 पर स्थित है। हरिद्वार रेलवे स्टेशन भी एक अच्छा विकल्प है।
- सड़क मार्ग: बद्रीनाथ सड़क मार्ग से दिल्ली, हरिद्वार, ऋषिकेश और अन्य प्रमुख शहरों से अच्छी तरह से जुड़ा हुआ है। ऋषिकेश या हरिद्वार से सुबह जल्दी बसें और टैक्सी उपलब्ध होती हैं, जो जोशीमठ होते हुए जाती हैं। इस यात्रा के दौरान आप पंचप्रयाग (देवप्रयाग, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, नंदप्रयाग और विष्णुप्रयाग) के दर्शन भी करते हैं।
माणा गांव: भारत का प्रथम गांव
बद्रीनाथ से मात्र 3-4 किमी दूर यह गांव भारत-तिब्बत सीमा का प्रथम गांव है।

- क्या देखें:
- व्यास गुफा और गणेश गुफा: महाभारत रचना से जुड़ी कथाएं।
- भीम पुल: सरस्वती नदी पर बना प्राकृतिक पत्थर का पुल।
- लास्ट टी शॉप ऑफ इंडिया: पहाड़ों के बीच चाय का आनंद।
- स्थानीय ऊनी कपड़े और भोटिया हस्तशिल्प: यादगार के लिए खरीदें।
ध्यान दें: माणा गांव के बाद के क्षेत्र (माना पास आदि) के लिए ILP परमिट अनिवार्य है। यह परमिट जोशीमठ से लिया जा सकता है।
वासुधारा फॉल्स: प्रकृति का पवित्र झरना
माणा गांव से 6 किमी का मध्यम स्तर का ट्रेक आपको 120 मीटर ऊंचे वासुधारा झरने तक ले जाता है। मान्यता है कि झरने की बूंदें केवल शुद्ध हृदय वाले लोगों को ही स्पर्श करती हैं।
- ट्रेक सुझाव: मजबूत जूते पहनें, पानी और एनर्जी स्नैक्स साथ लें, और दोपहर से पहले निकलें।
क्या पैक करें
- गर्म जैकेट, रेनकोट, दस्ताने, ऊनी मोजे
- व्यक्तिगत दवाएं, सनस्क्रीन, लिप बाम, टॉर्च
- पहचान पत्र, अतिरिक्त नकद और फर्स्ट एड किट
- आरामदायक जूते और हल्का बैकपैक
यात्रियों के लिए विशेष टिप्स
- जोशीमठ या गोविंदघाट में एक दिन रुककर एक्लिमेटाइज करें।
- सम्मानजनक कपड़े पहनें।
- सुबह जल्दी यात्रा शुरू करें, क्योंकि दोपहर बाद सड़कें बंद हो सकती हैं।
- कमरे, टैक्सी और गाइड पहले से बुक करें।
बद्रीनाथ केवल एक यात्रा नहीं, बल्कि एक आत्मिक अनुभव है। यहां हर मोड़ पर कोई कथा जीवित है, हर हवा में प्रार्थना है और हर कदम आशीर्वाद से भरा है। अलकनंदा के गीत सुनें, माणा गांव में कहानियां खोजें और वासुधारा की फुहारों में अपनी आत्मा को ताज़ा करें। यहां पहाड़ सिर्फ खड़े नहीं रहते, बल्कि आपके रक्षक बन जाते हैं।
By: Anushka Singhal